http://radiodwarka.com/event/kavi-sammelan-at-dwarka-sec-10/501
महिया तेरे लिए
Saturday, 5 January 2013
Saturday, 20 October 2012
फिर सुबह होगी
फिर सुबह होगी
रात ने ओढ़ रखा है
घने कुहरे को
बना कर काली चादर
इंतज़ार है उसे सुबह का
जब वो उतार फेंके गी
इस आवरण को
और निखर जाएगी
दुधिया उजली धुप-सी
जानती है वो
साँझ के होते ही
फिर दुबक जाना है उसे
काली देह में
खुद से खुद डरती-सी
मगर! खुश है इस बात से
कि फिर सुबह होगी!
-सुषमा भंडारी
Thursday, 18 October 2012
हाइकु / सुषमा भण्डारी
बाजारवाद ,
लेकर आया अब
नए संवाद ।
सहमा घर
है खिलौनों का डर
लगी नज़र ।
शब्द तोल
हृदय को टटोल
सोच के बोल
मुनाफाखोरी
पैदा करता आया
सदा से होरी ।
दिवाली पर्व
मनाएँ कुछ यूं भी
सब हों खुश ।
लेकर आया अब
नए संवाद ।
सहमा घर
है खिलौनों का डर
लगी नज़र ।
शब्द तोल
हृदय को टटोल
सोच के बोल
मुनाफाखोरी
पैदा करता आया
सदा से होरी ।
दिवाली पर्व
मनाएँ कुछ यूं भी
सब हों खुश ।
Subscribe to:
Posts (Atom)