फिर सुबह होगी
रात ने ओढ़ रखा है
घने कुहरे को
बना कर काली चादर
इंतज़ार है उसे सुबह का
जब वो उतार फेंके गी
इस आवरण को
और निखर जाएगी
दुधिया उजली धुप-सी
जानती है वो
साँझ के होते ही
फिर दुबक जाना है उसे
काली देह में
खुद से खुद डरती-सी
मगर! खुश है इस बात से
कि फिर सुबह होगी!
-सुषमा भंडारी
बहुत सकारात्मक सोच लिए सुंदर रचना ..... हर सुबह नया संदेशा ले कर आती है ...
ReplyDeleteshukriya sangeeta ji..
Deleteआपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल बृहस्पतिवार 25-10 -2012 को यहाँ भी है
ReplyDelete.... आज की नयी पुरानी हलचल में ....
फरिश्ते की तरह चाँद का काफिला रोका न करो ---.। .
बहुत ही उम्दा कविता
ReplyDeleteसादर
shukriya..
Deleteutkrisht prastuti.
ReplyDeletedhanyawaad..
Deletedhanyawaad..
ReplyDeleteबेहद सुन्दर आशाओं के प्रेरक भावों से सजी कोमल रचना..
ReplyDeleteसादर !!!